Tuesday, March 8, 2022

हिन्दू धर्म की जरूरी जानकारियां

 

हिंदू धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है और इसके साथ बहुत से दर्शन और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। हिंदू धर्म के अपनी सदियों पुरानी परंपराओं और मान्यताओं को आगे बढ़ाती जा रही है। हम आज भी पुराने रीति-रिवाजों को मानते चले आ रहे हैं। बचपन से आप बड़े-बुज़ुर्गों के मुंह से हिंदू धर्म के बारे में बहुत कुछ सुनते आए होंगे, बावजूद इसके हिंदू धर्म के बारे में बहुत सी ऐसी बातें है जो शायद आपको किसी ने नहीं बताई होगी। यहां रहे हिंदू धर्म के रोचक तथ्य।

असली नाम सनातन धर्म

कुछ लोग इसे वैदिक धर्म भी कहते हैं। सनातन का अर्थ है अनंत धर्म या अनंत सत्य।

कोई संस्थापक नहीं

दूसरे धर्मों की तरह हिंदू धर्म का कोई संस्थापक नहीं है। यह भारत का राज्यधर्म है और 1500-2000 ईसा पूर्व में ये चलन में आया। उस समय से संत और पुजारियों ने इस धर्म को बढ़ावा दिया। इसका कोई एक संस्थापक नहीं है।

सिर्फ एक ईश्वर

हिंदू धर्म में सिर्फ एक ही ईश्वर है और वो है ब्राह्मण। ब्राह्मण के तीन रूप है, ब्रह्मा, विष्णु औक महेश। आगे फिर इनके अनेक रूप है, जिसमें राम, कृष्ण, देवी सरस्वती, लक्ष्मी आदि शामिल हैं।

पत्थर से लेकर पौधों तक की पूजा

हिंदू धर्म में सिर्फ मूर्ति की ही पूजा नहीं की जाती, बल्कि पेड़ पौधों और पत्थर के अलावा लोग पृथ्वी और गाय की भी पूजा करते हैं। यानी हिंदू धर्म मूर्तिपूजन तक सीमित नहीं करता है।

एकमात्र धर्म जो नारीवाद को बढ़ावा देता है

हिंदू धर्म का रोचक तथ्य यह भी है कि यह धर्म नारीवाद को बढ़ावा देता है। राम, कृष्ण, शिव, माता लक्ष्मी, माता सरस्वती, माता वैष्णो आदि को ब्रह्मा जी ने समान अधिकार दिए थे। देवियों को देवताओं के बराबर की शक्ति प्राप्त थी।

मासिक धर्म वाली देवी की पूजा

मासिक धर्म को लेकर भले ही हमारे समाज में झिझक वो, मगर असम के कामख्या देवी मंदिर में कामाख्या माता की पूजा की जाती और कहा जाता है देवी मां मासिक धर्म में हैं। पीरियड्स के दौरान देवी की पूजा किए जाने से ये संदेश जाता है की पीरियड्स के दौरान महिलाएं अपवित्र नहीं होती।

कुछ हिंदू मंदिर अलग उद्देश्य के लिए बनाए गए

आपन खजुराहों के मंदिर के बारे में तो सुना ही होगा जहां देवी-देवताओं की जगह कामुक मूर्तियों की भरमार है। दरअसल, ये मंदिर उस वक़्त बना था जब लोग सांसारिक सुख छोड़कर संत बनकर मंदिरों में ही अपना समय बिताने लगे थे, जिससे उस क्षेत्र की जनसंख्या तेज़ी से कम होने लगी थी।

लचीला धर्म

हिंदू धर्म बहुत लचीला है और ये सभी तरह के बदलावों को आसानी से समाहित कर लेता है। हालांकि, इस धर्म में एक ही ईश्वर है, मगर लोग उनके अलग-अलग रूप की पूजा करते हैं।

कोई लिखित शास्त्र नहीं

हिंदू धर्म का मकसद वेदों को सुनकर उसे आत्मसात करना था, न कि केवल लिखना। हालांकि बाद में कई संतों ने शास्त्रों की रचना की। यह भी हिंदू धर्म के रोचक तथ्य में एक है।

हिंदू धर्म में जाति का बंधन नहीं

हिंदू धर्म में जातिवाद की कोई अवधारणा ही नहीं है, ये तो लोगों द्वारा बनाया गया है जो धर्म को जाति के आधार पर बांटना चाहते थे।

धन को पाप नहीं समझा जाता

आपने कई महात्माओं को कहते सुना होगा कि धन-दौलत पाप और माया है, मगर हिंदू धर्म में धन, काम और मानव की आधारभूत ज़रूरतों को पूरा करने पर विश्वास करता है। लोग धन के देवी लक्ष्मी, शांति के लिए माता संतोषी और काम के लिए माता रति की अराधना करते हैं।

हिन्दू धर्म के मूलभूत धर्मग्रंथ वेद हैं। वेद के चार भाग है ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेद के ही तत्वज्ञान को उपनिषद कहते हैं जो लगभग 108 हैं। वेद के अंग को वेदांग कहते हैं जो छह हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त।

  1. मनु आदि की स्मृतियां, 18 पुराण, रामायण, महाभारत और अनेक ऋषियों के नाम के सूत्रग्रंथ धर्मग्रंथ के ज्ञान का ही विस्तार है। इसके साथ ही ये हमारे इतिहास, सहित युद्धकला,चिकित्सा,ज्योतिष सहित तमाम अन्य विद्याओं के ज्ञान के भण्डार हैंI वेद, उपनिषद का सार या कहें कि निचोड़ गीता में हैं इसीलिए गीता को भी धर्मग्रंथ की श्रेणी में रखा गया है जो महाभारत का एक हिस्सा हैI
  2. वेदों के अनुसार ईश्‍वर एक ही है उसका नाम ब्रह्म (ब्रह्मा नहीं) है। उसे ही परमेश्वर, परमात्मा, परमपिता, परब्रह्म आदि कहते हैं। वह निराकार, निर्विकार, अजन्मा, अप्रकट, अव्यक्त, आदि और अनंत है। सभी देवी-देवता, पितृ, ऋषि-मुनि आदि उसी का ध्यान और प्रार्थना करते हैं। और उन्हीं परमेश्वर को परमात्मा को ब्रम्हा, विष्णु, महेश की त्रिमूर्ति के रूप में पूजा जाता हैI
  3. विद्वानों के अनुसार लगभग 90 हजार वर्षों ने हिन्दू धर्म निरंतर है। नाम बदला, रूप बदला, परंपराएं बदली, लेकिन ज्ञान नहीं बदला, देव नहीं बदले और न ही हमारे तीर्थ। हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि 8 हजार ईसा पूर्व सिंधु घाटी के लोग हिन्दू ही थे। दृविड़ और आर्य एक ही थे।
  4. हिन्दू धर्म में संध्यावंदन और ध्यान का बहुत महत्व है। कुछ लोग संध्यावंदन के समय पूजा-आरती, भजन-कीर्तन, प्रार्थना, यज्ञ या ध्यान करते हैं। लेकिन संध्यावंदन इन सभी से अलग होती है। संध्यवंदन आठ प्रहर की होती है जिसमें दो प्रहर सभी के लिए हैं- सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से संध्यावंदन की जाती है।
  5. हिन्दू धर्म जीवन जीने की एक शैली है। योग, आयुर्वेद और व्रत के नियम को अपनाकर आप हमेशा सेहतमंद बने रहकर खुश रह सकते हैं। इसमें भोजन, पानी, निद्रा, ध्यान, कर्म, मन, बुद्धि और विचार के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी है जिसे आज विज्ञान भी मानता है। इसे पढ़ना चाहिए।
  6. वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं-1. ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, 3. पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ। ब्रह्मयज्ञ का अर्थ संध्यावंदन, स्वाध्याय तथा वेदपाठ करना। देवयज्ञ अर्थात सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म करना। पितृयज्ञ अर्थात पूर्वज, आचार्य और माता-पिता में श्रद्धा रखते हुए श्राद्ध कर्म करना। वैश्वदेवयज्ञ अर्थात अग्नि, पशु और पक्षी को अन्य जल देना। अंत में अतिथि यज्ञ अर्थात अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा करनाI
  7. हिन्दुओं के 10 कर्तव्य और कर्म हैं- संध्योपासन, तीर्थ, पाठ, दान, यज्ञ, व्रत, संस्कार, उत्सव (पर्व-त्योहार जयंती), सेवा और श्राद्ध। इसके अलावा चार पुरुषार्थ है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। यह चारों चार आश्रम पर आधारित हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।
  8. हिन्दू धर्म अनुसार जीवन का लक्ष्य मोक्ष होता है। मोक्ष का अर्थ होता है ज्ञान को उपलब्ध होना, आत्मज्ञान प्राप्त करना या खुद को उस अवस्था में ले आना जहां जन्म और मृत्यु से परे रहकर इच्छा अनुसार जन्म लेना और मरना।
  9. हिन्दू धर्म मानता है कि सृष्टि की उत्पत्ति हुई है किसी ने की नहीं है और यह कार्य कोई छह दिन में नहीं हुआ है। इसके लिए अरबों वर्ष लगे हैं। यह मानिए कि परमात्मा या आत्मा ही प्रारंभ में थे। उन्हीं से महत्, महत् से अंधकार, अंधकार से आकाश, आकाश से वायु, आयु से अग्नि, अग्नि से जल, और जल से पृथ्वी (अन्य सभी ग्रह) की उत्पत्ति हुई है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व हैं।
  10. हिन्दू धर्म पहले संपूर्ण धरती पर व्याप्त था। पहले धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बूद्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। राजा प्रियव्रत संपूर्ण धरती के और राजा अग्नीन्ध्र सिर्फ जम्बूद्वीप के राजा थे। जम्बूद्वीप में नौ खंड हैं- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इसमें से भारतखंड को भारत वर्ष कहा जाता था। भारतवर्ष के 9 खंड हैं- इसमें इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। भारतवर्ष के इतिहास को ही हिन्दू धर्म का इतिहास नहीं समझना चाहिए।
  11. ईस्वी सदी की शुरुआत में जब अखंड भारत से अलग दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग पढ़ना-लिखना और सभ्य होना सीख रहे थे, तो दूसरी ओर भारत में विक्रमादित्य, पाणीनी, चाणक्य जैसे विद्वान व्याकरण और अर्थशास्त्र की नई इमारत खड़ी कर रहे थे। इसके बाद आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे विद्वान अंतरिक्ष की खाक छान रहे थे। वसुबंधु, धर्मपाल, सुविष्णु, असंग, धर्मकीर्ति, शांतारक्षिता, नागार्जुन, आर्यदेव, पद्मसंभव जैसे लोग उन विश्वविद्यालय में पढ़ते थे जो सिर्फ भारत में ही थे। तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा आदि अनेक विश्व विद्यालयों में देश विदेश के लोग पढ़ने आते थे।

तो यदि आप हिन्दू हैं तो गर्व कीजिए कि आप एक महान विरासत का हिस्सा हैं, अपने धर्मग्रंथो का अध्ययन कीजिये और उनके ज्ञान से स्वयं को उन्नत और श्रेष्ठ बनाइयेI और यदि आप हिन्दू नहीं भी हैं तब भी हर मनुष्य को स्वयं को अच्छाई की और ले जाने का जन्मजात हक हैI आइये और हिंदुत्व की महान विरासत से, अद्भुत ज्ञान से अपने जीवन का निर्माण कीजियेI

Sunday, August 22, 2021

Osho - The Osho Upanishad

Chapter 4 -  Misery is the Prison  -  3

Question: Osho, in the mind, in the process of thinking, there is so much energy. How can we use that energy in a creative and constructing way?

Osho:
THE QUESTION IS VERY COMPLEX.
It sound simple, but is not simple.
Who is going to use this energy?
If mind itself is going to use, it can never be creative and can never be constructive.
That is what is happening all over the world.
That is what is happening in science.
The whole misery of science is that mind is using its energy.
But mind is a negative force; it cannot use anything creatively, it needs a master.
Mind is a servant.
Do you have a master?

So to me this question is...Meditation bring the master in.
It makes you fully aware and conscious that the mind is your instrument.
Now, whatever you want to do with it you can do.
And if you don’t want to do anything with it, you can put it aside; you can remain in absolute silence.
Right now you are not the master – even for five minutes.
You cannot say to the mind, “Please, for five minutes, just be silent for five minutes”.
Those will be the five minutes when mind will be faster, rushing more then ever – because it will have to show you who is the master.

If you try for even five minutes to stop thinking, more thoughts than ever will rush in – simply to show you that you are not the master.
So first one has to get the mastery, and the way to become the master is not to say to the thoughts, “STOP”.
The way to become the master is to watch the whole thought process.

Your thoughts have to understand one thing: that you are not interested in them.
The moment you have made the point you have attained a tremendous victory.
Just watch.
Don’t say anything to the thoughts.
Don’t judge.
Don’t condemn.
Don’t tell them to move.
Let them do whatsoever they are doing, let them do any gymnastics; simply watch, enjoy.
It is a beautiful film.
And you will be surprised: just watching a moment comes when thoughts are not there, there is nothing to watch.

This is the door I have been calling nothingness, emptiness.

From this door enters your real being, the master.

And that master is absolutely positive; in its hands everything turn into gold.
With meditation the master is there, and the master is absolutely positiveness.
In its hands the same mind, the same energy, becomes creative, constructive, life affirmative.

So you cannot do anything directly with the mind.

The master is missing and for centuries the servant has been thinking HE is the master.

The mind is a tremendous powerful instrument.
No computer is as powerful as man’s mind – cannot be because is made by man’s mind.
Nothing can be, because they are all made by man’s mind.
A single man’s mind has such immense capacity: in a small skull, such a small brain can contain all the information contained in all libraries of the earth, and that information is not a small amount.

Scientist are agreed that we may not be able to make a computer comparable to the human mind which can be put in such a small place.

But the result of this immense gift to man has not been beneficial – because the master is absent and the servant is running the show.

The result is wars, violence, murder, rape.

Man is living in a nightmare, and the only way out is to bring the master in.

It is there, - you just have to get hold of it.

And watchfulness is the key: just watch the mind.

The moment there are no thoughts, immediately you will be able to see yourself – not as mind, but as something beyond, something transcendental to mind.

And once you are attuned with the transcendental then the mind is in your hands.

It can be immensely creative.

It can make this very earth a paradise.

There is no need for any paradise to be searched for above in the clouds, just as there is no need to search for any hell – because we have already created hell.
We are living in it.

You can change this hell into heaven if your mind can be under the guidance of the master, of your self-nature.
And it is a simple process.
But don’t try directly with the mind. Don’t touch the mind.
First just find out where the master is.
It is a complicated mechanism.
Let the master be there, and the mind function as a servant so perfectly.

Wednesday, June 3, 2020

गायत्री मंत्र जप का समय

 
 
गायत्री मंत्र जप एक ऐसा उपाय है, जिससे सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। शास्त्रों में मंत्रों को बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी बताया गया है। सबसे ज्यादा प्रभावी मंत्रों में से एक मंत्र है गायत्री मंत्र। इसके जप से बहुत जल्दी शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।
गायत्री मंत्र जप का समय

गायत्री मंत्र जप के लिए 3 समय बताए गए हैं, जप के समय को संध्याकाल भी कहा जाता है।
* गायत्री मंत्र के जप का पहला समय है सुबह का। सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए।
* मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
* इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त से कुछ देर पहले। सूर्यास्त से पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
यदि संध्याकाल के अतिरिक्त गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
* ये हैं पवित्र और चमत्कारी गायत्री मंत्र :
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
गायत्री मंत्र का अर्थ :
- सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, परमात्मा का वह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
गायत्री मंत्र जप की विधि :
* इस मंत्र के जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है।
* जप से पहले स्नान आदि कर्मों से खुद को पवित्र कर लेना चाहिए।
* मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए।
* घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए मंत्र का जप करना चाहिए।
गायत्री मंत्र जप के 8 फायदे
* उत्साह एवं सकारात्मकता बढ़ती है।
* धर्म और सेवा कार्यों में मन लगता है।
* पूर्वाभास होने लगता है।
* आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ती है।
* स्वप्न सिद्धि प्राप्त होती है।
* क्रोध शांत होता है।
* त्वचा में चमक आती है।
 
* बुराइयों से मन दूर होता है।




1, नदी में सिक्के

नदी में सिक्के डालने की परंपरा सालों से चली आ रही है। आखिर हम नदी में सिक्का क्यों डालते हैं? इस रिवाज के पीछे एक बड़ी वजह छिपी हुई है। दरअसल, जिस समय नदी में सिक्का डालने की यह प्रथा  या रिवाज शुरू हुआ था, उस समय में आज के स्टील के सिक्के की तरह नहीं बल्कि तांबे के सिक्के चला करते थे और तांबा जीवन और सेहत के लिए कितना फायदेमंद होता है, यह शायद आप बेहतर जानते होंगे।

पहले के ज़माने में पानी का मुख्य स्रोत नदियां ही हुआ करती थीं। लोग हर काम में नदियों के पानी का ही इस्तेमाल किया करते थे। चूंकि तांबा पानी के प्यूरीफिकेशन करने में काम आता है और ये नदियों के प्रदूषित पानी को शुद्ध करने का एक बेहतर औजार भी रहा है इसलिए लोग जब भी नदी या किसी तालाब के पास से गुजरते थे, तो उसमें तांबे का सिक्का डाल दिया करते थे। आज तांबे के सिक्के चलन में नहीं है, लेकिन फिर भी तब से चली आ रही इस प्रथा को लोग आज भी मान रहे हैं। आइए जानते हैं अन्यहिन्दू परंपराएं....
2. चूड़ियों का महत्व
पुराने समय मे ज्यादातर महिलाएं सोने-चांदी की चूड़ियां पहना करती थीं। माना जाता है कि सोने-चांदी के घर्षण से शरीर को इनके शक्तिशाली तत्व प्राप्त होते हैं जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। महिलाएं, पुरुषों से कमजोर होती हैं। चूड़ियां उनके हाथों को मजबूत और शक्तिशाली बनाती हैं।
3. सिन्दूर लगाना
सिन्दूर हल्दी, नींबू और पारा के मिश्रण से तैयार किया जाता है। सिन्दूर महिला के रक्तचाप को नियंत्रित करने के अलावा उनकी सेक्सुअल ड्राइव को भी बढ़ाता है। इसे उस जगह पर लगाया जाता है, जहां पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है, जहां पर सारे हार्मोन डेवलप होते हैं। इसके अलावा सिन्दूर तनाव से भी महिलाओं को दूर रखता है।
4. बच्चों का कान छेदन
विज्ञान कहता है कि कर्णभेद से मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है। इससे बौद्धिक योग्यता बढ़ती है और बच्चों के चेहरे पर चमक आती है। इसके कारण बच्चा बेहतर ज्ञान प्राप्त कर लेता है।
5. बड़ों के चरण-स्पर्श करना
बड़ों के चरण-स्पर्श करने से अपने से बड़ों की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति हमारे शरीर को नई ऊर्जा प्रदान कर ऊर्जावान, निरोगी और सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण कर देती है। सुखासन से पूरे शरीर में रक्त-संचार समान रूप से होने लगता है जिससे शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है।
6. हाथों में मेहंदी लगाना
विज्ञान कहता है कि मेहंदी बहुत ठंडी होती है और इस लगाने से दिमाग ठंडा रहता है और तनाव भी कम होता है इसलिए शादी के दिन दुल्हनें मेहंदी लगाती हैं जिससे कि उन्हें शादी का तनाव न हो पाए।
7. सर पर चोटी रखना
सिर पर चोटी रखने की परंपरा को हिन्दुत्व की पहचान तक माना जाता है। असल में जिस स्थान पर शिखा यानी कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचोबीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। सुषुम्ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से बचाती है।
8. भोजन के अंत में मिठाई खाना
जब हम कुछ मसालेदार भोजन खाते हैं तो हमारे शरीर में एसिड बनने लगता है जिससे हमारा खाना पचता है और यह एसिड ज्यादा न बने, इसके लिए आखिर में मिठाई खाई जाती है, जो पाचन प्रक्रिया शांत करती है।
9. तुलसी के पौधे की क्यों पूजा होती है?
तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुत: उतने ही गुणकारी हैं जितना वर्णन शास्त्रों में किया गया है। यह कीटनाशक है, कीटप्रतिकारक तथा खतरनाक जीवाणुनाशक है। विशेषकर एनाफिलिज जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है।
10. पीपल के वृक्ष की पूजा
पीपल की उपयोगिता और महत्ता वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों कारणों से है। यह वृक्ष अन्य वृक्षों की तुलना में वातावरण में ऑक्सीजन की अधिक से अधिक मात्रा में अभिवृद्धि करता है। यह प्रदूषित वायु को स्वच्छ करता है और आस-पास के वातावरण में सात्विकता की वृद्धि भी करता है। इसके संसर्ग में आते ही तन-मन स्वत: हर्षित और पुलकित हो जाता है। यही कारण है कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान एवं मंत्र जप का विशेष महत्व है।

कबीर दास


 
 
एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था। एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुंचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता?
 
उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहां पहुंचकर वह बोला यह साड़ी कितने की दोगे?
जुलाहे ने कहा - 10 रुपए की।
तब लड़के ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिए और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला - मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे?
जुलाहे ने बड़ी शांति से कहा 5 रुपए।
लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किए और दाम पूछा? जुलाहा अब भी शांत। उसने बताया - ढाई रुपए।
लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया।
अंत में बोला - अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के?
जुलाहे ने शांत भाव से कहा - बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।
अब लड़के को शर्म आई और कहने लगा - मैंने आपका नुकसान किया है। अंतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूं।
जुलाहे ने कहा कि जब आपने साड़ी ली ही नहीं तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूं?
 
लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा, मैं बहुत अमीर आदमी हूं। तुम गरीब हो। मैं रुपए
दे दूंगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे? और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।
जुलाहे ने मुस्कुराते हुए कहा - तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बुना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल हो जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपए से यह घाटा कैसे पूरा होगा? जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी।
लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आंखें भर आई और वह संत के पैरो में गिर गया।
जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा -
बेटा, यदि मैं तुम्हारे रुपए ले लेता तो है उस में मेरा काम चल जाता पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता। साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूंगा। पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहां से लाओगे तुम? तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।
 
सीख - संत की ऊंची सोच-समझ ने लडके का जीवन बदल दिया। यह संत कोई और नहीं बल्कि कबीर दास जी थे।

Sunday, May 24, 2020

हिंदू धर्म के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्य


  • हिन्दू धर्म का कोई एक धर्मशास्त्र नहीं है बल्कि बहुत सारी किताबें मिलाकर इसे एक धार्मिक आधार प्रदान करती हैं.


  • ऋग्वेद का इतिहास लगभग 3800 साल पुराना है जबकि 3500 साल तक इसे केवल मौखिक रूप में ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया जाता रहा था.
  • हिन्दू धर्म की एक खास बात यह है कि यहां पर भगवान को याद करने के लिए कोई एक खास दिन या समय नहीं होता. जब भी आपका दिल करे आप प्राथना के लिए मंदिर जा सकते हैं.
  • हिन्दू धर्म शायद इकलौता ऐसा धर्म है जिसमें देवी-देवताओं की संख्या समान है और दोनों को एक ही श्रद्धा के साथ पूजा जाता हैं.
  • हिन्दू धर्म इकलौता ऐसा धर्म है जो नास्तिकों को भी स्वीकृति देता है.हिंदू धर्म वास्तव में केवल एक भगवान में विश्वास करता है, लेकिन कई रूपों में.
  • हिंदू धर्म समय की एक रैखिक अवधारणा के बजाय एक परिपत्र में विश्वास करता है.
  • 108 हिंदू धर्म में एक पवित्र संख्या है और इसे शुभ माना जाता है.
  • संस्कृत दुनिया की सभी भाषाओं की मां है.
  • महाभारत और रामायण में परमाणु बम का इस्तेमाल किया जाता था.
  • फुटबॉल और शतरंज जैसे खेल भारत में पैदा हुए थे.

Tuesday, January 16, 2018

क्या आपको पता है हिंदू धर्म से जुड़े इन सवालों के जवाब? नहीं, तो जरूर पढ़े ये..

 वैसे तो सभी को अपने धर्म से जुड़ी सामान्य बातें, उनके पीछे के रहस्य आप सभी को पता ही होंगे। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि कोई आपसे आपके धर्म से जुड़ी बात पूछता है, परन्तु आप उसका जवाब नहीं दें पाते। जी हां, अक्सर ऐसा होता कि हम अपने हिंदू धर्म के अनुसार पूजा पाठ तो करते है लेकिन उसके पीछे वैसा करने की या उसी प्रकार से करनी की बात को न ही समझ पाते है और न ही हमें उसके बारे में पता होता है।




लेकिन सच्चाई तो यही है कि यदि आप हिंदू धर्म से ताल्लुक रखते हैं तो कुछ बेहद सामान्य धार्मिक बातों के बारे में आपको जानना अति आवश्यक है। जैसे मंदिर में या फिर किसी देवालय के बाहर चप्पल क्यों उतारी जाती है? मंदिर में घंटी क्यों बजाई जाती है ? आज हम आपको बताने जा रहे है हिन्दू धर्म में किए जानी वाली ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में जिससे शायद ही आप जानते होंगे। तो आइए जानते है..

मंदिर के बाहर चप्पल क्यों उतारते है?





जैसा कि आप सब जानते है कि मंदिर में प्रवेश नंगे पैर ही करना पड़ता है और यह नियम दुनिया के हर हिंदू मंदिर में है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर की फर्शों का निर्माण पुराने समय से अब तक इस प्रकार किया जाता है कि ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत होती हैं। जब इन पर नंगे पैर चला जाता है तो अधिकतम ऊर्जा पैरों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसलिए ऐसा किया जाता है।


मंदिर में घंटी क्यों बजाई जाती है ? 


आपने देखा होगा कि जब भी मंदिर में प्रवेश किया जाता है तो दरवाजे पर घंटा टंगा होता है, जिसे बजाना होता है। इसके अलावा मुख्य मंदिर (जहां भगवान की मूर्ति होती है) में भी प्रवेश करते समय घंटा या घंटी बजानी होती है। इसके पीछे कारण यह है कि इसे बजाने से निकलने वाली आवाज से 7 सेकंड तक गूंज बनी रहती है, जो शरीर के 7 हीलिंग सेंटर्स को सक्रिय कर देती है।


भगवान की मूर्ति को गर्भ गृह के बीच क्यों रखा जाता है?




हमेशा मंदिर में भगवान की मूर्ति को गर्भ गृह के बिल्कुल बीच में रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर सबसे अधिक ऊर्जा होती है, जहां सकारात्मक सोच से खड़े होने पर शरीर में सकारात्मक ऊर्जा पहुंचती है और नकारात्मकता दूर भाग जाती है। यही कारण है कि भगवान की मूर्ति को गर्भ गृह के बीच रखा जाता है।


क्यों की जाती है परिक्रमा ?




मंदिर में दर्शन करने और पूजा करने के पश्चात परिक्रमा करनी होती है। ये परिक्रमा 8 से 9 बार करनी होती है। ऐसा करने का कारण यह है कि जब मंदिर में परिक्रमा की जाती है तो सारी सकारात्मक ऊर्जा, शरीर में प्रवेश कर जाती है और मन को शांति मिलती है।

क्यों दीपक के ऊपर घुमाया जाता है हाथ?



अक्सर अपने देखा होगा कि आरती के बाद सभी लोग दिए या कपूर के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं। ऐसा करने के पीछे कारण ये है कि ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती है और बेहतर महसूस होता है।

Wednesday, February 24, 2016

मोरे गिरधर कान्हा...


मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

 

मोरे सुंदर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

दर्श दिखा कर प्रभु हर लो मन की पीर !

 

आजा कान्हा आजा, रास रचा जा

बंसी की धुन से, मन को लुभा जा,

राह तके  तोरी  थक गई अँखियाँ,

टप टप  बरसे है नीर !

 

मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

 

कान्हा तुझे बस अपना माना,

इस जग को इक सपना जाना,

सुन लो बस अब अर्ज़ हमारी,

बिनती करूँ हूँ रघुबीर!

 

मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

 

तेरी सूरत मोरे मन में बसी है,

तेरे रंग में मेरी सीरत रची है ,

अपने चरणों में  मुझे जगह दे

हर लो कन्हाई मोरी पीर!

 

मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

Wednesday, July 22, 2015

मरते वक़्त रावण ने लक्ष्मण को बताई थी ये बड़े काम की 3 बातें, आप भी जानिए



जिस समय रावण मरणासन्न अवस्था में था, उस समय भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान् पंडित विदा ले रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता। श्रीराम की बात मानकर लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के सिर के नजदीक जाकर खड़े हो गए।


रावण ने कुछ नहीं कहा। लक्ष्मणजी वापस रामजी के पास लौटकर आए। तब भगवान ने कहा कि यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़े होना चाहिए कि सिर की ओर। यह बात सुनकर लक्ष्मण जाकर इस रावण के पैरों की ओर खड़े हो गए। उस समय महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताई जो जीवन में सफलता की कुंजी है।



1- पहली बात जो रावण ने लक्ष्मण को बताई वह ये थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी शुभस्य शीघ्रम्। मैंने श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई।


2- दूसरी बात यह कि अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, मैं यह भूल कर गया। मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध कर सके ऐसा कहा था क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। मेरी मेरी गलती हुई।

3- रावण ने लक्ष्मण को तीसरी और अंतिम बात ये बताई कि अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए। यहां भी मैं चूक गया क्योंकि विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था। ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी।

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  हिंदू धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है और इसके साथ बहुत से दर्शन और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। हिंदू धर्म के अपनी सदियों पुरानी परंप...