Tuesday, May 31, 2011

कान्हा मेरे घर आजा !!

कृष्ण कन्हईया मोरा 
बंसी बजईया मोरा, 
दर्श  दिखा जा 
कान्हा मेरे घर आजा !!

बाट निहारे तोरी 
आँखें थक गयी मोरी, 
मोसे प्रीत निभा जा,
आजा मेरे घर आजा!
दर्श  दिखा जा 
कान्हा मेरे घर आजा !!

जब मैं मटकी उठाऊँ 
और पानी लेने जाऊं, 
अपनी सूरत दिखा जा,
मेरे मन को लुभा जा!!
दर्श  दिखा जा 
कान्हा मेरे घर आजा !!

क्यों खेलो आँख मिचोली, 
सखियाँ करें है  ठिठोली, 
कानों में रस टपका जा,
अपनी बंसी सुना जा!!
दर्श  दिखा जा 
कान्हा मेरे घर आजा !!

तुम से वियोग की पीड़ा,
काटे जैसे हो कोई कीड़ा,
प्यारी मूर्त दिखा जा,
ढारस दिल को बंधा जा!
दर्श  दिखा जा 
कान्हा मेरे घर आजा !!

Monday, May 9, 2011

नन्द गाँव में कान्हा के प्रेम में गोपी की गुहार ...


लो मरोरो मोरी बैंया मोरे कन्हैया 
मैं तो तेरी दासी रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों,
मैं तो तेरे ही रंग राती रे!

तोरी छबी बसी मन आँगन, 
मोरे प्यारे भोले सांवरिया,
तुम्हे देखूँ तो कछु सूजे नाही, 
मैं तो हों जाऊं बाँवरिया,
मत तरसा अब तो आ कान्हा, 
मैं तोरे दरस की प्यासी रे !
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों....

सुध बुध मैं अपनी भूल जाऊं, 
सुन तोरी बंसी की तान रे,
तुम क्यों निष्ठुर हों गए कान्हा, 
मोरी हालत से अनजान रे,
रिम झिम बरसे मोरे नैनवा, 
जैसे हों कोई नदिया सी रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों.....

माखन के मटके भरे है लटके, 
तुम माखन क्यों नहीं खाते,
अपने ग्वाल बाल के संग, 
तुम मेरे घर पर क्यों नहीं आते,
कान्हा तेरे दरस की लालसा 
मुझे रहती है तरसाती रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों..

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