Monday, May 9, 2011

नन्द गाँव में कान्हा के प्रेम में गोपी की गुहार ...


लो मरोरो मोरी बैंया मोरे कन्हैया 
मैं तो तेरी दासी रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों,
मैं तो तेरे ही रंग राती रे!

तोरी छबी बसी मन आँगन, 
मोरे प्यारे भोले सांवरिया,
तुम्हे देखूँ तो कछु सूजे नाही, 
मैं तो हों जाऊं बाँवरिया,
मत तरसा अब तो आ कान्हा, 
मैं तोरे दरस की प्यासी रे !
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों....

सुध बुध मैं अपनी भूल जाऊं, 
सुन तोरी बंसी की तान रे,
तुम क्यों निष्ठुर हों गए कान्हा, 
मोरी हालत से अनजान रे,
रिम झिम बरसे मोरे नैनवा, 
जैसे हों कोई नदिया सी रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों.....

माखन के मटके भरे है लटके, 
तुम माखन क्यों नहीं खाते,
अपने ग्वाल बाल के संग, 
तुम मेरे घर पर क्यों नहीं आते,
कान्हा तेरे दरस की लालसा 
मुझे रहती है तरसाती रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों..

3 comments:

  1. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए!
    सुध बुध मैं अपनी भूल जाऊं, सुन तेरी बंसी की तान रे,
    तुम क्यों निष्ठुर हों गए कान्हा, मेरी हालत से अनजान रे॥
    बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! हर एक पंक्तियाँ दिल को छु गयी! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  2. उर्मी जी,

    बहुत बहुत शुक्रिया आप का! कभी वक़्त मिले तो मेरे दुसरे ब्लॉग पर ज़रूर आयें!

    आशु
    http://www.dayinsiliconvalley.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. .



    बहुत बहुत आभार और साधुवाद
    इस सुंदर रचना के लिए … !

    ReplyDelete

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