Wednesday, June 3, 2020

गायत्री मंत्र जप का समय

 
 
गायत्री मंत्र जप एक ऐसा उपाय है, जिससे सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। शास्त्रों में मंत्रों को बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी बताया गया है। सबसे ज्यादा प्रभावी मंत्रों में से एक मंत्र है गायत्री मंत्र। इसके जप से बहुत जल्दी शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।
गायत्री मंत्र जप का समय

गायत्री मंत्र जप के लिए 3 समय बताए गए हैं, जप के समय को संध्याकाल भी कहा जाता है।
* गायत्री मंत्र के जप का पहला समय है सुबह का। सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए।
* मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
* इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त से कुछ देर पहले। सूर्यास्त से पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
यदि संध्याकाल के अतिरिक्त गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
* ये हैं पवित्र और चमत्कारी गायत्री मंत्र :
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
गायत्री मंत्र का अर्थ :
- सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, परमात्मा का वह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
गायत्री मंत्र जप की विधि :
* इस मंत्र के जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है।
* जप से पहले स्नान आदि कर्मों से खुद को पवित्र कर लेना चाहिए।
* मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए।
* घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए मंत्र का जप करना चाहिए।
गायत्री मंत्र जप के 8 फायदे
* उत्साह एवं सकारात्मकता बढ़ती है।
* धर्म और सेवा कार्यों में मन लगता है।
* पूर्वाभास होने लगता है।
* आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ती है।
* स्वप्न सिद्धि प्राप्त होती है।
* क्रोध शांत होता है।
* त्वचा में चमक आती है।
 
* बुराइयों से मन दूर होता है।




1, नदी में सिक्के

नदी में सिक्के डालने की परंपरा सालों से चली आ रही है। आखिर हम नदी में सिक्का क्यों डालते हैं? इस रिवाज के पीछे एक बड़ी वजह छिपी हुई है। दरअसल, जिस समय नदी में सिक्का डालने की यह प्रथा  या रिवाज शुरू हुआ था, उस समय में आज के स्टील के सिक्के की तरह नहीं बल्कि तांबे के सिक्के चला करते थे और तांबा जीवन और सेहत के लिए कितना फायदेमंद होता है, यह शायद आप बेहतर जानते होंगे।

पहले के ज़माने में पानी का मुख्य स्रोत नदियां ही हुआ करती थीं। लोग हर काम में नदियों के पानी का ही इस्तेमाल किया करते थे। चूंकि तांबा पानी के प्यूरीफिकेशन करने में काम आता है और ये नदियों के प्रदूषित पानी को शुद्ध करने का एक बेहतर औजार भी रहा है इसलिए लोग जब भी नदी या किसी तालाब के पास से गुजरते थे, तो उसमें तांबे का सिक्का डाल दिया करते थे। आज तांबे के सिक्के चलन में नहीं है, लेकिन फिर भी तब से चली आ रही इस प्रथा को लोग आज भी मान रहे हैं। आइए जानते हैं अन्यहिन्दू परंपराएं....
2. चूड़ियों का महत्व
पुराने समय मे ज्यादातर महिलाएं सोने-चांदी की चूड़ियां पहना करती थीं। माना जाता है कि सोने-चांदी के घर्षण से शरीर को इनके शक्तिशाली तत्व प्राप्त होते हैं जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। महिलाएं, पुरुषों से कमजोर होती हैं। चूड़ियां उनके हाथों को मजबूत और शक्तिशाली बनाती हैं।
3. सिन्दूर लगाना
सिन्दूर हल्दी, नींबू और पारा के मिश्रण से तैयार किया जाता है। सिन्दूर महिला के रक्तचाप को नियंत्रित करने के अलावा उनकी सेक्सुअल ड्राइव को भी बढ़ाता है। इसे उस जगह पर लगाया जाता है, जहां पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है, जहां पर सारे हार्मोन डेवलप होते हैं। इसके अलावा सिन्दूर तनाव से भी महिलाओं को दूर रखता है।
4. बच्चों का कान छेदन
विज्ञान कहता है कि कर्णभेद से मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है। इससे बौद्धिक योग्यता बढ़ती है और बच्चों के चेहरे पर चमक आती है। इसके कारण बच्चा बेहतर ज्ञान प्राप्त कर लेता है।
5. बड़ों के चरण-स्पर्श करना
बड़ों के चरण-स्पर्श करने से अपने से बड़ों की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति हमारे शरीर को नई ऊर्जा प्रदान कर ऊर्जावान, निरोगी और सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण कर देती है। सुखासन से पूरे शरीर में रक्त-संचार समान रूप से होने लगता है जिससे शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है।
6. हाथों में मेहंदी लगाना
विज्ञान कहता है कि मेहंदी बहुत ठंडी होती है और इस लगाने से दिमाग ठंडा रहता है और तनाव भी कम होता है इसलिए शादी के दिन दुल्हनें मेहंदी लगाती हैं जिससे कि उन्हें शादी का तनाव न हो पाए।
7. सर पर चोटी रखना
सिर पर चोटी रखने की परंपरा को हिन्दुत्व की पहचान तक माना जाता है। असल में जिस स्थान पर शिखा यानी कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचोबीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। सुषुम्ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से बचाती है।
8. भोजन के अंत में मिठाई खाना
जब हम कुछ मसालेदार भोजन खाते हैं तो हमारे शरीर में एसिड बनने लगता है जिससे हमारा खाना पचता है और यह एसिड ज्यादा न बने, इसके लिए आखिर में मिठाई खाई जाती है, जो पाचन प्रक्रिया शांत करती है।
9. तुलसी के पौधे की क्यों पूजा होती है?
तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुत: उतने ही गुणकारी हैं जितना वर्णन शास्त्रों में किया गया है। यह कीटनाशक है, कीटप्रतिकारक तथा खतरनाक जीवाणुनाशक है। विशेषकर एनाफिलिज जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है।
10. पीपल के वृक्ष की पूजा
पीपल की उपयोगिता और महत्ता वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों कारणों से है। यह वृक्ष अन्य वृक्षों की तुलना में वातावरण में ऑक्सीजन की अधिक से अधिक मात्रा में अभिवृद्धि करता है। यह प्रदूषित वायु को स्वच्छ करता है और आस-पास के वातावरण में सात्विकता की वृद्धि भी करता है। इसके संसर्ग में आते ही तन-मन स्वत: हर्षित और पुलकित हो जाता है। यही कारण है कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान एवं मंत्र जप का विशेष महत्व है।

कबीर दास


 
 
एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था। एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुंचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता?
 
उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहां पहुंचकर वह बोला यह साड़ी कितने की दोगे?
जुलाहे ने कहा - 10 रुपए की।
तब लड़के ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिए और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला - मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे?
जुलाहे ने बड़ी शांति से कहा 5 रुपए।
लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किए और दाम पूछा? जुलाहा अब भी शांत। उसने बताया - ढाई रुपए।
लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया।
अंत में बोला - अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के?
जुलाहे ने शांत भाव से कहा - बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।
अब लड़के को शर्म आई और कहने लगा - मैंने आपका नुकसान किया है। अंतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूं।
जुलाहे ने कहा कि जब आपने साड़ी ली ही नहीं तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूं?
 
लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा, मैं बहुत अमीर आदमी हूं। तुम गरीब हो। मैं रुपए
दे दूंगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे? और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।
जुलाहे ने मुस्कुराते हुए कहा - तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बुना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल हो जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपए से यह घाटा कैसे पूरा होगा? जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी।
लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आंखें भर आई और वह संत के पैरो में गिर गया।
जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा -
बेटा, यदि मैं तुम्हारे रुपए ले लेता तो है उस में मेरा काम चल जाता पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता। साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूंगा। पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहां से लाओगे तुम? तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।
 
सीख - संत की ऊंची सोच-समझ ने लडके का जीवन बदल दिया। यह संत कोई और नहीं बल्कि कबीर दास जी थे।

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