घुटनों के बल एक दिन
सब से आँखें बचाये,
घिसटते गिरते पड़ते
घर की देहली तक आये
धीरे धीरे हमारे
नन्हे कृष्ण मुरारी!
देहली ऊपर पेट के बल
लेट कर लटक जाएँ
आधे इस दर आधे उस दर
ना कर पार पाए
कितने बेबस हो गए
बांकें बिहारी !
एक जोता खाए
देहली के उस पार
दूसरा जोता खाए
देहली के इस पार
पार ना कर पायें
देहली बिहारी!
आँखों से आंसू
टप टप टपकने लगे,
बेबस हो कर नन्हे
भगवन बिलखने लगे
कैसी लीला दिखाए
नटखट गिरधारी!
नन्द बाबा यह देख
मुस्करा रहे थे,
भगवान की लीला का
आनन्द उठा रहे थे
झट से गोद में उठा
लेते है पिता श्री!
नारद भी यह लीला
चुपके से देखते है,
नारायण नारायण
का अलाप लेते है
कहते है कैसा खेल है
तेरा मेरे बनवारी!
जीवों को जो भवसागर
के उस पार उतारे,
आज अपने बाबा की
देहली पर ही है अटका रे
क्यों रोते हो तुम
सब को तारनहारी!