Friday, June 10, 2011

कृष्ण लीला


घुटनों के बल एक दिन
सब से आँखें बचाये, 
घिसटते गिरते पड़ते 
घर की देहली तक आये
धीरे धीरे हमारे  
नन्हे कृष्ण मुरारी!

देहली ऊपर पेट के बल
लेट कर लटक जाएँ  
आधे इस दर आधे उस दर
ना कर पार पाए
कितने बेबस हो गए 
बांकें बिहारी !

एक जोता खाए
देहली के उस पार
दूसरा जोता खाए
देहली के इस पार
पार ना कर पायें
देहली बिहारी!

आँखों से आंसू
टप टप टपकने लगे,
बेबस हो कर नन्हे
भगवन  बिलखने लगे
कैसी लीला दिखाए
नटखट गिरधारी!
 
नन्द बाबा यह देख
मुस्करा रहे थे,
भगवान की लीला का
आनन्द उठा रहे थे
झट से गोद में उठा
लेते है पिता श्री!

नारद भी यह लीला
चुपके से देखते है, 
नारायण  नारायण
का अलाप लेते है
कहते है कैसा खेल है
तेरा मेरे बनवारी!

जीवों को जो भवसागर 
के उस पार  उतारे,
आज अपने बाबा की
देहली पर ही है अटका रे
क्यों रोते हो तुम
सब को तारनहारी!

4 comments:

  1. जीवों को जो भवसागर
    के उस पार उतारे,
    आज अपने बाबा की
    देहली पर ही है अटका रे
    क्यों रोते हो तुम
    सब को तारनहारी!


    लाजवाब.....

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  2. भक्तिरस में डूबी बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  3. नन्द बाबा यह देख
    मुस्करा रहे थे,
    भगवान की लीला का
    आनन्द उठा रहे थे
    झट से गोद में उठा
    लेते है पिता श्री!
    दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!

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  4. आदरणीय आशु जी
    सादर जयश्रीकृष्ण !

    आऽहाऽऽह… ! कितना सुंदर शब्द-चित्र उकेरा है आपने -
    जीवों को जो भवसागर
    के उस पार उतारे,
    आज अपने बाबा की
    देहली पर ही है अटका रे
    क्यों रोते हो तुम
    सब को तारनहारी!

    मन आनंदित हो गया …

    यहां प्रस्तुत आपकी कई पुरानी प्रविष्टियां भी देखीं …
    कृष्ण-भक्ति के रंग में नहा गया हूं … आभार !

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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