Wednesday, February 24, 2016

मोरे गिरधर कान्हा...


मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

 

मोरे सुंदर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

दर्श दिखा कर प्रभु हर लो मन की पीर !

 

आजा कान्हा आजा, रास रचा जा

बंसी की धुन से, मन को लुभा जा,

राह तके  तोरी  थक गई अँखियाँ,

टप टप  बरसे है नीर !

 

मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

 

कान्हा तुझे बस अपना माना,

इस जग को इक सपना जाना,

सुन लो बस अब अर्ज़ हमारी,

बिनती करूँ हूँ रघुबीर!

 

मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

 

तेरी सूरत मोरे मन में बसी है,

तेरे रंग में मेरी सीरत रची है ,

अपने चरणों में  मुझे जगह दे

हर लो कन्हाई मोरी पीर!

 

मोरे गिरधर कान्हा मनवा हुआ है अधीर!

कृपा करो मो पे, सब दुःख हरो मोरे रघुवीर !

2 comments:

  1. सुन्दर।भक्ति भाव से सराबोर रचना।

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  2. सुन्दर।भक्ति भाव से सराबोर रचना।

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