कृष्ण कन्हईया मोरा
बंसी बजईया मोरा,
दर्श दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!
बाट निहारे तोरी
आँखें थक गयी मोरी,
मोसे प्रीत निभा जा,
आजा मेरे घर आजा!
दर्श दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!
जब मैं मटकी उठाऊँ
और पानी लेने जाऊं,
अपनी सूरत दिखा जा,
मेरे मन को लुभा जा!!
दर्श दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!
क्यों खेलो आँख मिचोली,
सखियाँ करें है ठिठोली,
कानों में रस टपका जा,
अपनी बंसी सुना जा!!
दर्श दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!
तुम से वियोग की पीड़ा,
काटे जैसे हो कोई कीड़ा,
प्यारी मूर्त दिखा जा,
ढारस दिल को बंधा जा!
दर्श दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!
शब्द-शब्द राग और समर्पण के भावों से भरे इस सुन्दर गीत के लिए हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteवर्षा जी,
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आये और मेरा होंसला बढाया उस के आप का बहुत बहुत शुक्रिया.
इस से बहुत प्रेरणा मिलती है..
आशु
अति सूंदर गीत******
ReplyDeleteअति सूंदर गीत******
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ReplyDeleteदीपक भाई,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद होंसला बढ़ाने के लिए ..सांवरे की लीला कौन बयान कर सकता है...
आशु